सर्वप्रथम माँ शारदे को नमन,
तत्पश्चात "लेखनी" मंच को नमन,
मंच के सभी श्रेष्ठ सुधि जनों को नमन,
विषय:- 🌹 स्वैच्छिक 🌹
शीर्षक -- 🌷बाट निहारूँ🌷
दिनांक -- ३०.०४.२०२३
दिन -- रविवार
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चित विह्वल अति हर्ष से मेरे,
द्वार खड़ी मैं बाट निहारूँ।
चंचल चितवन चहक चहक,
पिया की धुन में पिया पुकारूँ।
दिल तरसे अब तेरे दरस को,
सुबह सजूँ नित सांझ संवारूँ।
प्यास लगी है नैनन को मेरे,
छवि देख निज दिल मैं हारूँ।
तुझे पाने को जी मेरा मचले,
सोच मिलन को मन मेरा हरसे।
पट घूँघट का खोल के बैठी,
तेरी एक झलक को मन तरसे।
पल इंतज़ार का कटे नहीं अब,
बिन साजन नैना मेरे बरसे।
उड़ता पंछी उन्मुक्त गगन का,
पग मेरे निकले ना घर से।
दिल की बात समझ सकूँ ना,
क्यों बढ़ रही है बेकरारी।
सुन प्रीत की धुन बेसुध हुई मैं,
उस धुन पर जाऊँ बलिहारी।
द्वार पार कहीं जा सकूँ ना,
मैं भोली नयी नवेली नारी।
मैं राधा सी बावली बन बैठी,
अब तो आ जा कृष्ण मुरारी।
🙏🌷 मधुकर 🌷🙏
(अनिल प्रसाद सिन्हा 'मधुकर', जमशेदपुर, झारखण्ड)
(स्वरचित मौलिक रचना, सर्वाधिकार ©® सुरक्षित)
Reena yadav
01-May-2023 06:55 AM
👍👍
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
01-May-2023 06:20 AM
बहुत ही सुंदर सृजन और अभिव्यक्ति एकदम
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ऋषभ दिव्येन्द्र
30-Apr-2023 10:48 PM
बहुत ही सुन्दर रचना
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